Hindi 10th दीर्घ उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर जो 2023 परीक्षा में 90 परसेंट आने की संभावना।
Hindi. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर।
(ग) भ्रष्टाचार
भूमिका भ्रष्टाचार राष्ट्र का महानतम शत्रु है। राष्ट्र की प्रगति का वह सबसे बड़ा बाधक है। आर्थिक, राजनीतिक और औद्योगिक सभी क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है। जनता, नेता एवं सरकार सभी यह जानते हैं कि हमारे बीच ठीक उसी तरह रच-बस गया है जिस तरह फल के ठीक कर्म में कीड़ा रस बस जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि सामाजिक न्याय की गहरी आकांक्षा होते हुए भी इसे मिटाने की वैसी इच्छा नहीं है।
भ्रष्टाचार : एक परम्परा के रूप में शाहजहाँ एवं औरंगजेब के दरबार में पांसीसी यात्री डॉ. वर्नियर के अनुसार, भारत में एक परम्परा 5 के रूप में भ्रष्टाचार व्याप्त है। इन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि पूर्व में परम्परानुसार बड़े लोगों के पास खाली हाथ नहीं जाया जाता, नजराने की यह प्रथा शताब्दियों पुरानी है। आज नजराने के निकटतम साथी भ्रष्टाचार व्यापक होता जा रहा है और अपनी जड़ें गहरी जमाता जा रहा है। विडम्बना तो इस बात में है कि भ्रष्टाचार उन सरकारी अफसरों में भी व्याप्त है जो महत्त्वपूर्ण पदों पर है।
विभागीय एवं नयायालयों:-
में भ्रष्टाचार-एक पत्र के अनुसार, पुलिस एवं न्यायालयों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। एक दारोगा से दो गुणा वेतन पानेवाला सामान्य गृहस्थ उस शान से नहीं रह सकता जिस शान से दारोगा रहता है। न्यायालयों में कदम-कदम पर लोगों को ‘उनलोगों’ का हक देना पड़ता है। नकल लेने की तारीख देने की तारीख की जानकारी प्राप्त करने की और उसी प्रकार के अन्य कार्यों की गैर-कानूनी नोस है। कहीं-कहीं तो पेशकार लोगों यहाँ तक कह देते हैं कि उन्हें हाकिमों के बंगले पर साग-सब्जी आदि का प्रबंध करना पड़ता है जिनका इन्तेजाम इस तरह हैं।करने पर वे मजबूर हैं।
प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार -प्रशासनिक स्तर पर भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। बोफोर्स घोटाला, शेयर घोटाला आदि प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण ही हुए हैं।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् की गतिविधियों की जाँच के लिए ए. के. सरकार समिति नियुक्त की गयी थी। इस समिति ने परिषद् के कर्मचारी के बारे में टीका-टिप्पणी करते हुए लिखा है कि बड़ी-बड़ी जगहों पर बिना किसी विज्ञपन और जाँच के कुछ लोगों को नियुक्त कर लिया गया। यह भी कहा कि बिना किसी आवश्यकता के बड़े-बड़े वाली नौकरियाँ बना ली गयी और उनपर कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को नियुक्त कर लिया गया।
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भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. राधाकृष्णन ने अपने एक दीक्षांत भाषण में कहा था कि आज देश में नैतिक संकट जिस मात्रा में है उतना संकट नोका है और न वस्त्र का नैतिक संकट के कारण ही आज समाज की मान्यताएँ बदल रही है। सभी क्षेत्र के लोग नैतिकता और उसकी मान्यताओं को व्यर्थ की वस्तु समझने लगे हैं। उनकी यह धारणा बन गई है कि ईमानदारी की राह चलना और कार उठाना एक बेव है। दूसरों को धोखा देकर रिश्वत लेकर जब अन्य लोग कुछ ही दिनों में माल होता है और सारी सुविधाएँ उपलब्ध कर लेते हैं तब मात्र ये ही ईमानदारी क्यों बरते और कष्ट क्यों लें। परिणामस्वरूप वे भी रिश्वत लेने लगते हैं और यह अनैतिकता की भावना जन-जन में प्रसार जाती है। भ्रष्टाचार के जनक केवल आर्थिक दृष्टि से विपन्न और सकदास्त व्यक्ति मात्र नहीं है प्रत्युत ये भी है जो संपन्न है और उनका भ्रष्टाचार तो और भी निकृष्ट कोटि का है। Hindi 10th
समाधान- इस तरह से स्पष्ट है कि भारत में भ्रष्टाचार व्याप्त है। किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि पूर्ण तंत्र ही भ्रष्टाचारी हो गया है। कभी-कभी बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और देश का बड़ा भयावह रूप चित्रित किया जाता है। स्थिति ऐसी नहीं है, इसे दूर किया जा सकता है। नैतिक शिक्षा पर जोर डाला जाना आवश्यक है। सत्तारूद व्यक्तियों को जाँच के लिए उचित आयोगों का निर्माण भी आवश्यक है। कुछ ऐसे आचारों का बनाया जाना भी आवश्यक है जो पदासीन व्यक्तियों के व्यवहारों का निर्धारण कर सके। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि ये व्यवहार उन व्यक्तियों के लिए लागू किये जा सकते हैं जो सत्ताधरियों पर आरोप लगाते हैं और उनके कार्य-कलापों की निंदा करते हैं।
(घ) राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी
संविधान द्वारा घोषित राजभाषा- भारतीय संविधान की धारा 343 में यह घोषणा की गई है कि ‘देवनागरी लिपि में हिंदी भारत की राजकीय भाषा होगी ।’ आगे धारा 351 में यह कहा गया है कि ‘संघ सरकार का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी के प्रचार का प्रयत्न करे और उसे इस तरह विकसित करे कि वह भारत की संश्लिष्ट संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके । Hindi 10th
संविधान की धारा 343 में यह भी घोषित किया गया है कि संविधान लागू होने की तिथि से 15 वर्ष आगे तक राजकाज के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाए। ऐसा इसलिए कहा गया, क्योंकि तब तक हिंदी का इतना प्रचार-प्रसार और विकास नहीं हो पाया था कि राजकीय कार्यों के लिए उसका प्रयोग किया जा सके। 1950 से 1965 तक भारत सरकार ने यद्यपि प्रयत्नों की खानापूरी की, किंतु स्थिति यथावत बनी रही। हिंदी अंगेजी की दासी ही बनी रही। उसे पूरी तरह राजभाषा का सम्मान नहीं मिल पाया। Hindi 10th
हिंदी की वर्तमान दशा आत लगभग 42 करोड़ भारतीय हिंदी जानते-समझते और बोलते हैं। हिंदी समझने वालों की संख्या इससे अधि क है। हिंदी का विकास संस्कृत तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं से हुआ है। इसलिए यह अन्य भारतीय भाषाओं के निकट है। इसमें प्रयुक्त संस्कृत शब्द पूरे भारत में जाने जाते हैं। हिंदी का व्याकरण बहुत लचीला है। इसलिए इसमें अन्य भाषाओं के शब्दों, रूपों और शैलियों को पचाने की अद्भुत शक्ति है। विज्ञान, तकनीकी ज्ञान और कार्यालयी प्रयोग में यह पूर्णतया समर्थ है। इसका शब्दकोष निरंतर विकसित हो रहा है। इसकी देवनागरी लिपि विश्व की सर्वाधिक वैज्ञनिक लिपि है। भारत की अन्य अनेक भाषाओं में भी इसी लिपि का व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार हिंदी की क्षमता अन्य किसी भी भाषा से कम नहीं है। Hindi 10th
हिंदी -विकास के सरकारी प्रयास-भारत सरकार ने अपने आदेशों में हिंदी के विकास, प्रचार और प्रसार का प्रयत्न किया है। अन्य भाषाओं के श्रेष्ठ ज्ञान को हिंदी में अनूदित करने का प्रयास भी किया गया है। बैंक, डाकतार Hindi 10th
तथा सरकारी काम-काज में हिंदी को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है। हिंदी की उपेक्षा सरकारी प्रयत्नों के बावजूद हिंदी उपेक्षा की शिकार है। आज भी अंग्रेजी बोलना, अंग्रेजी में नाम लिखना, हस्ताक्षर करना, निमंत्रण-पत्र छपवाना गौरव का चिह्न माना जाता है। हिंदी के निमंत्रण-पत्र देखकर अल्प- शिक्षित लोग भी नाक-भौं सिकोड़ते हैं। हिंदी का प्रयोग करने वाले को पिछड़ा और दकियानूस माना जाता है।
दुर्दशा के कारण –
हिंदी की वर्तमान दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है-अंग्रेजी मानसिकता। भारत के लोग आजादी के 50 वर्ष बाद भी अंग्रेजी के गुलाम हैं। उन्हें अंग्रेजी सभ्यता-संस्कृति अच्छी लगती है और अपनी सारी परंपराएँ व्यर्थ लगती हैं। यहाँ के लोग अंग्रेजी बोलकर स्वयं को ऊँचा समझते हैं। हिंदी की दुर्दशा का दूसरा बड़ा कारण है-भ्रष्ट राजनीति । हिंदी -अहिंदी विवाद को लेकर भारतीय राजनेताओं ने अनेक आंदोलन किए। दक्षिण भारत में हिंदी के छा जाने का हौव्वा खड़े करके उसके प्रति घोर तिरस्कार का वातावरण पैदा किया गया। राजनीति आंदोलन हुए, विरोध हुए। दुष्प्रचार किया गया कि हिंदी थोपी जा रही है। इससे हिंदीभाषी लोगों का दबदबा रहेगा। वही सरकार पर छा जाएँगे. आदि-आदि। परिणामस्वरू प चोट-प्रेमी सरकारों ने हिंदी को बलात न थोपने की नीति अपनाई । Hindi 10th
सरकारी अफसरशाही का षड्यंत्र भी हिंदी की हीन दशा के लिए दोषी है। आजादी के बाद सरकार के बड़े-बड़े अधिकारियों ने जानबूझ कर हिंदी की बजाय अंग्रेजी का वर्चस्व बनाए रखा जिससे उनकी अंग्रेजीदा संतानें ऊँचे-ऊंचे पदों पर नियुक्त होकर देश की धन-संपत्ति का मुक्त भोग करती रहें। कैसे दुर्भाग्य है कि आजादी के चालीस वर्षों बाद तक भी आई.ए.एस. की परीक्षाओं का माधयम हिंदी को नहीं बनाया गया था। Hindi 10th
हिंदी की दुर्दशा की चौथा कारण है-हिंदी में श्रेष्ठ पठनीय सामग्री का अभाव। हिंदी की पत्र-पत्रिकाएँ अंग्रेजी की पत्र-पत्रिकाओं की तुलना में कहीं नहीं ठहरतीं। हिंदी के पाठक भी इसके लिए दोषी हैं। वे अच्छे साहित्य को खरीदने में रूचि नहीं लेते। Hindi 10th
समाधान-हिंदी के प्रचार-प्रसार और सुधार का कार्य दो स्तरों पर होना चाहिए सरकार अपनी नीतियों में हिंदी को प्रोत्साहन दे। सभी महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं में हिंदी माध्यम को प्राथमिकता दे। हिंदी का प्रयोग करने वाले कर्मचारियों को प्रोन्नति दे हिंदी में हुए श्रेष्ठ लेखन का स्वागत किया जाए। अच्छी पत्र-पत्रिकाओं को सरकारी सहायता दी जाए।
(ङ) मेरे प्रिय नेता
प्रस्तावना- सत्य एवं अहिंसा के पुजारी, त्याग एवं सहनशीलता की मूर्ति महात्मा गाँधी विश्व की महान विभूति थे, जिन्हें संसार कभी भी भूल नहीं सकता। पीड़ितों एवं दलितों के उद्धारक महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ के पोरबंद नामक स्थान में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था । उनके पिता करमचंद पोरबंदर राज्य के प्रधानमंत्री थे और उनकी माता ‘पुतली बाई’ एक उच्चकोटि की धार्मिक महिला थी। ‘गाँधी उनकी वंशगत उपाधि थी। महात्मा गाँधी ने रात की Hindi 10th